Tuesday 16 August 2016

देश सेवा : मेरा धर्म

देश की सेवा करना सब के  नसीब में नहीं
सेवा करना इक कला जो सब को  सकती नहीं
वो है क़िस्मत का धनी जिसे मिलता है ऐसा मोका
किदमत और वफ़ादारी कभी जाया जा सकती नहीं

सेवा के लिये सिर्फ़ हथियार चलाना ही नहीं ज़रूरी
तु क़लम से भी कर सकता है देश की सेवा
मेहनती बन ईमानदारी कर क़ायदे क़ानून को मान
ऐसी सेवा से भी मेरा देश होगा महान

हम सब अगर अपना अपना ईमानदारी से करे काम
सुबह हमारी भी खिल सकती है हसीन हो सकती है शाम
कोई करे सीमा की सुरक्षा कोई करे कारख़ानो की रखवाली
हमें हर फूल की देखरेख करनी है बन के उस  का माली

एक जैसा मोका सब को मिले एक जैसा हो सम्मान
वयोपारी हो नौकरी पेशा या मज़दूर हो या किसान
सब देश को अपना योगदान दे मन वचन कर्म से 
फिर अपने तिरंगा को मिलें गा ऊँचा आसमान

देश ने हमें सब कुछ दिया है हमें भी इसे कुछ देना है 
देश अगर मुश्किल में हो तो हमें जागना है नहीं सोना है
देश सेवा करना हर हिंदुस्तानी का धर्म है ईमान है
देश आगे बड़े गा तब ही इस की इज़्ज़त है मान है

देश पे मर मिटने का वक़्त अब नहीं पर सेवा तो कर सकते है
काँटे चुन के इस की राहों से फूलों को भर सकते है
आवो आज यह कर ले फेशला के देश के कुछ काम आयें गे 
"चाहतअपना अपना सहयोग दे के स्वतंत्रता दिवस मनायें गे  

प्रिय मित्रों स्वतंत्रता दिवस की सत्तरवीं वर्षगाँठ के सुअवसर पर हार्दिक शुभकामनाएं    

Happy Independence Day to all my fellow citizens, Let us take a pledge that we will do our work and perform our duty with honesty and dedication to make India proud in the community of Nations.

Sunday 7 August 2016

ग़ज़ल: माना अपनी दोस्ती में कुछ शिकवे कुछ गिले हैं

माना अपनी दोस्ती में कुछ शिकवे कुछ गिले हैं
पर हम दोनो मानते है हम क़िस्मत से मिले हैं

अपने रिस्ते की सच्चाई हम से बेहतर कोई ना जाने
मगर रिस्तों में कुछ गड़बड़ी है लोगों में अटकलें हैं

अपनी दोस्ती की दूसरी कोई भी मिसाल यहाँ ना होगी
हम अलग अलग सोच के भी इक साँचे में डले है

अपनी दोस्ती में प्यार है संवाद है सम्मान है जान है
कभी दिल की तरह बुझे है कभी चिराग़ों से जले है

दोस्ती में क्या क्या किया है किस किस को यह बताएँ
आज सीसे की तरह टूटे है कल फूलों की तरह खिलें हैं

फूलों और बहारों की ही नहीं यह दोस्ती हमारी 
इक दूजे के ख़ातिर हम तो काँटों पे भी चले हैं

धूप पे हवा का झोंका सर्दी में लिहाफों की गरमी
अंधेरे जब मिले है तो हम बन के दिये जले हैं

हमें दो जिस्म इक जाँ कह के बुलाते है लोग अपने
जब के इक पेड़ के फल नहीं हम इक साथ ना फले है

बहुत मुश्किल है आसान नहीं है उमर बर की दोस्ती
जब अलग अलग जगह है जन्मे अलग आँचल में पले है

हर दोस्ती को देना पड़ता है इम्तिहान दोस्ती का
हल हम को भी करनी है थोड़ी जो मुस्किलें हैं

दोस्ती दुश्मनी शोरत जवानी हर सह का अंत है
वो बाग़ भी उज़रें गे जो अब की बहार में खिलें हैं

सब कुछ कर लिया है दोस्ती की ख़ातिर"चाहत"
इक हो चुके है कब से फिर भी क्यों फ़ासले है