Wednesday 29 June 2016

Ghazal:ज़ख़्म गहरा है दर्द है ज़्यादा

ज़ख़्म गहरा है दर्द है ज़्यादा
प्यार उस का उम्मीद से आधा

ना दग़ाबाज़ में ना बेवफ़ा वो है
निभा सके फिर भी ना इक वादा

कैसे पूरी होती प्यार की क़समें रशमे 
ना मैं बन सका क्रिशन ना वो है राधा

ज़िद पे अड़ा तो कर जावों गा क़यामत
यूँ तो बन्दा हूँ मैं  बहुत सीधा साधा

तारे भी तोड़ के ले सकता है इंसान
ठान ले जो कर ले पक्का इरादा

मुस्किल ज़िन्दगी कर ली है उल्ज़ा के हमने
दोस्त जीना आसान है बहुत है साधा

बड़े आदमी बनते बनते छोटे हो गये इंसान
क़सम खाई झूठी तोड़ हर वादा

प्यार उस को ही मिलता है "चाहत"
दर्द सहने का जिस में हो माधा

1 comment: