Monday 17 September 2018

मैंने माँगा कभी खुदा नहीं

मेरा दर्द तुझ से अलग कहाँ
मेरी ख़ुशी तुझ से जुदा नहीं
मेरी ख़्वाहिश बस है तू ही तू
मैंने माँगा कभी खुदा नहीं

बेरुख़ी तक तो ठीक था
पर तू बेवफ़ाई कैसे कर गई
मैं हेरान हूँ ये सोच के
तेरी आत्मा कैसे मर गई
तू धोखे पे धोखे देती रही
पर मैं कभी हुआ बेवफ़ा नहीं I
मेरी ख़्वाहिश बस है तू ही तू .....

तू दूर गई अकेला छोड़ के
दिल के सभी अरमान को तोड़ के
मैंने आज भी रखें है तेरे लिए
दिल के टूकरे सभी जोड़ के
कोन कहता है मैं सुबह शाम
करता तेरे लिए दुआ नहीं 
मेरी ख़्वाहिश बस है तू ही तू .....

मेरे जीवन को बरबाद करने का
गुनाह तुझ से हुआ तो है
बेमतलब बेबस हो के जीना
लगता मुझे बुरा तो है
फिर भी खुदा से माँगी मैंने
तेरे लिए कोई सज़ा नहीं
मेरी ख़्वाहिश बस है तू ही तू  .....

तेरी यादों की इक दुनिया
मैं कब से बनाए बैठा हूँ
तेरे वास्ते दिल के गुलशन का
हर फूल सजाये बैठा हूँ
तेरा पेगाम मुझ तक न लाए
यहाँ चलती ऐसी हवा नहीं
मेरी ख़्वाहिश बस है तू ही तू   ....

तुझे फिर से पाने की चाह
मेरे दिल से कभी गई नहीं
तेरा दुबारा मेरा हो जाने
शायद ‘चाहत’ अब सही नाहीं
क्यों के मेरी रूह यह जानती है
तू दूर हो के भी जुदा नहीं
मेरी ख़्वाहिश बस है तू ही तू  ....

मान ले बहन की बात

कोई बहन नहीं ऐसी जो भाई से
न हुई होगी नाराज़ कभी
वो बहन ही है जो छुपाए रखे है
अपने भाई के राज सभी

कोई भाई नहीं होगा जो बहन पे
न हुआ होगा ग़ुस्सा कभी
वो भाई ही है जो रोते रोते बहन की
विदा करता है डोली सजी

यह रिश्ता बहन भाई का
खटीं मीठी यादों से बनता है
दुख तख़लीफ में भाई बहन के
हाथ थामे चलता है 

दूर भी रहे तो भी बहन भाई को 
हर वक़्त दुआएँ देती है 
मुश्किल में बड़ी बहन माँ की तरह
भाई को आँचल में पनाएँ देती है

भाई बहन के लिए अकसर
कितने सपने रंगीन बुनता है
बड़ा भाई पिता की तरह बहन की
हर अच्छी बुरी बातें भी सुनता है

राखी का त्योहार इस रिश्ते को
कुछ और मज़बूत बनाता है
शिकवे गिले अगर हुए हों तो
दिलों की दूरी को मिटाता है

हर बहन और भाई आवो मिल के
आज यह क़सम खाते है
अब की राखी को हम मिल के
इक यादगार बनाते है

आज के बाद कभी किसी का 
रुठना मनाना न होगा
राखी पे न आने का 
कोई भी बहाना न होगा

तेरी ग़लती मेरी ग़लती
अब इस पे शिकवे गिले नहीं
त्योहार का फिर मज़ा क्या
अगर भाई बहन गले मिले नहीं 

दुआयों से इक दूसरे की
झोली को अब भरना होगा
पुरानी तल्खियों को भूल के
साथ साथ आगे चलना होगा

फिर से रहबर बन के
आगे चले गा भाई
फिर से बहन कहे गी
रुक जा भाई मैं आइ

आ फिर से बचपने की 
यादों को करें गें ताज़ा
तू भी मान ले बहन की बात
‘चाहत’ तू भी आ जा

बेल्ट : एक तोफ़ा

अब जब के मेरी दुनिया हो गई बरबाद है
मुझे साल याद नहीं पर इतना याद है
तूने मेरे किसी जनम दिन पर
मुझे एक बेल्ट का तोफ़ा दिया था
मैं वैसे तुमे दिल से तोफ़े देता रहा हूँ
मगर बहुत कम ही तुझ से लेता रहा हूँ
पर मुझे याद है बार बार तेरे कहने पे
मैंने तुमे यह मोका दिया था 
मुझे एक बेल्ट का तूने तोफ़ा दिया था

एक गुलाब एक चाकलेट से ले के दिल भी
मैंने तोफ़े में दिया है तुझ को
अपनी दुनिया अपना जहाँ अपनी ज़िंदगी क्या क्या नहीं
बेमोके हर मोके पे दिया है तुझ को
तुझे अपना मान के सच्चे मन से टूट के
ख़ुद से ज़्यादा प्यार किया है तुझ से
बदले में बेवफ़ाई रुशवाई कर के
तूने बड़ी मासूम बन के मुझे धोखा दिया था

मैंने तेरी साथ गुज़ारे सारे लम्हे
सारी यादें, सारे वादे सारी क़समें
तेरे दिए सारे दर्द सारे दुख सारे ग़म
सारी तड़प सारे सदमे सारे सितम
इसी बेल्ट में बाँध दिए हैं
और इस को कस लिया है 
थोड़ा रोया हूँ तोड़ा हँस लिया है

इस आस में के यह सभी तेरे दिए तोफ़े
कभी दूर न जा सके मेरे पास रहें गें
कब तक यह चुपचाप ख़ामोश रहें गें
कभी न कभी कुछ तो बोले गें कहें गे
जब कुछ कहें गें तो मैं भी हिम्मत कर के
इन से कुछ जाने अनजाने सवाल पूछूँ गा
दिल की बात कर के इन का भी हाल पूछूँ गा

पूछूँ गा तु कहाँ रहती है आजकल
पूछूँ गा कैसी है तेरे दिल की महफ़िल
पूछूँ गा क्या तुझे भी मेरी याद आती है
पूछूँ गा क्या तुझे भी कोई चीज़ तड़पाती है
“चाहत’ क्या तेरे झूठी महोबत की लो फिर जल गई है
और तु किसी और के साँचे में फिर से डल गई है ?