Friday, 1 September 2017

GAZAL: जब से बिखरा है मेरा घर तिनकों की तरह

जब से बिखरा है मेरा घर तिनकों की तरह 
अपने भी मुझ से मिल रहे हैं घेरों की तरह 

यह प्यार मेरा जान ही लेने पे तुला क्यों है 
मैं भी अब टूट रहा हूँ दिल के टुकरों की तरह 

यक़ीं नही पर सच है उसी ने पीठ में चुरा गोपा
मैंने सीने से लगाया था जिसे फ़रिश्तों की तरह 

यह ख़ुशी के हैं या गम्मी के फेशला तुम कर लो
मेरे आँसू अब बरसते हैं बादलों की तरह 

मुझे दुख दर्द है जब से पता चला है लोगों को
दुश्मन भी अफसोस करते हैं दोस्तों की तरह

यह कैसी बहार अब की बार आयी है मेरे शहर
फूल भी ज़ख़्म दे गये मुझको काँटों की तरह

तुम से मिलना इक ख़ुशनुमा याद होती थी कभी
तुझ से मुलाक़ात अब होती है हादसों की तरह

बिना हमसफ़र आ के मंज़िल पे तनहा बैठा हूँ 
मंज़िल भी मुझको देखती है रास्तों की तरह 

यह देख के मुझ में अब कुछ बचा नहीं खाने को 
चील भी पेश आ रहे है कबूतरों की तरह 

जब से थक हार के बैठा हूँ उमीदों के धर पे
तब से तुम भी मुझे परखती हो दूसरों की तरह

मैं इक बार तेरा हो के फिर किसी का न हुआ
तु है के बार बार बदला है रीवाजों की तरह

जब से तूने खुदा बंद कर दी सुननी मेरी दुआ
मुझे हर मूर्ति दिखती है सिर्फ़ पत्थरों की तरह 

तु छोड़ जाये गा मुझे यह गुमहा न था "चाहत"
मैंने तुझको सम्भाले रखा गा प्यारे रिस्तों की तरह 

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