Thursday 16 November 2017

बुझा चिराग़

दर्द बन के तेरा प्यार दिल में उठता है
सुबह शाम यह तड़पता है दुखता है
आँसू बन के छलकता है आँखों से 
आह बन के हाटों पे आ के रुकता है

मेरे चेहरे से तेरी कहानी लोग पढ़ते है
और जान लेते है दिल शेर कैसे लिखता है
मेरी बर्बादियों के क़िस्से सुन सुन के
पता चलता है के प्यार क्यों बिकता है 

लोग पूछते हैं तेरे बाद उस का क्या होगा
तेरे इशारों पे जो रुकता और चलता है 
धोखे खा के महोबत में यह जाना “चाहत”
बुझा चिराग़ कहाँ बार बार जलता है

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