Sunday 24 January 2016

ग़ज़ल: यह तेरी ज़िन्दगी है और सब तेरे फ़ेसले है

यह तेरी ज़िन्दगी है और सब तेरे फ़ेसले है
ख़ुशियाँ के लम्हे हैं या ग़मुँ के सिलसिले है

बहकी या तु भटकी जीती या के तु हारी
जैसे भी रहे हालत हम तेरे साथ ही चले है

तूजे जान के भी तुजसे अनजान हूँ मैं अब तक
साथ राह के भी लगे के दिलूँ में फ़ासले है

तुने मुझसे छुपाए बरसूँ कई राज अपने दिल के
आ जा कभी तो कह दे जो शिकवे और ग़िले हैं

तूजको दिखा सका न मैं ज़ख़्म अपने दिल के
तेरे फ़ेशलूँ से अक्सर अरमान मेरे जलें हैं

तु चाह के भी छुपा ब पाई अपनी बेवफ़ाई मुझसे
तेरी बेवफ़ाई के फ़साने तेरी आँखूँ से मिले हैं

मुझ को यक़ीं है अब भी मेरे प्यार से तु बदले गी
बता बेकार कैसे होंगे जो दर्द आँसू बन डले है

दर्द-ओ-ग़म अपना हम ने सब से छुपा लिया है
"चाहत' इसलिए सब को दिखते कितने अच्छे भले हैं

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